DNS (डीएनएस) मतलब या फुल फॉर्म डोमेन नेम सरवर होता है।
इंटरनेट सिस्टम में आईपी एड्रेस की मदद से कंप्यूटर एक दूसरे से कम्युनिकेट कर पाते हैं, और एक दूसरे को पहचान पाते हैं।
कंप्यूटर इंसानी भाषा को नहीं समझते हैं।
तो यहां सवाल यह बनता है, कि अगर कंप्यूटर इंसानी भाषा को नहीं समझते हैं, तो वह हमारे द्वारा सर्च किए गए किसी भी वेबसाइट को कैसे, हमारे लिए ओपन कर पाते हैं।
यहीं पर DNS या डोमेन नेम सिस्टम काम में आता है।
उदाहरण के तौर पर मान लेते हैं की कोई एक व्यक्ति जो इंग्लिश में बात करता है, और किसी चाइनीज भाषा जानने वाले व्यक्ति से कम्युनिकेट करना चाहता है, तो उसे एक ट्रांसलेटर की जरूरत होगी।
ऐसा ही कुछ इंटरनेट सिस्टम में भी होता है, कंप्यूटर आईपी एड्रेस को समझते हैं, और हम इंसान हमारी भाषा जैसे कि हिंदी या इंग्लिश।
डीएनएस एक ट्रांसलेटर के रोल को निभाता है, इंसान और कंप्यूटर के बीच में।
DNS या डोमेन नेम सर्वर एक पूरा टेबल मेंटेन करता है, जिसमें हर वेबसाइट का आईपी एड्रेस मैप किया जाता है।

इसको आसान भाषा में समझने के लिए हम एक एग्जांपल ले सकते हैं, जैसे कि जब हम अपने वेब ब्राउज़र में फेसबुक ओपन करना चाहते हैं, तो हम facebook.com टाइप करते हैं ।
डीएनएस सर्वर इसको आईपी एड्रेस में कन्वर्ट कर ब्राउज़र को बताता है, कि उसे किस आईपी एड्रेस से संपर्क करना है।
फिर वेब ब्राउजर उस आईपी ऐड्रेस के सर्वर से संपर्क कर जरूरी इंफॉर्मेशन लाकर हमें प्रदान करता है।
दूसरी भाषा में हम कह सकते हैं की DNS कंप्यूटर के फोन बुक की तरह काम करता है।
जहां हम नाम से किसी भी वेबसाइट को सर्च करते हैं, लेकिन DNS उसे नंबर के अनुसार सर्च कर हमारे सामने लाता है।
DNS (डीएनएस) कैसे काम करता है?
DNS, DNS सरवर की मदद से काम करता है
डीएनएस सर्वर भी एक कंप्यूटर ही होता है, जो एचटीएमएल फाइल और अन्य तरह के फाइल्स जैसे कि इमेज, वीडियो आदि को अपने पास स्टोर करता है।
बहुत सारे सरवर एक साथ काम करते हैं, और वेब ब्राउज़र को आईपी एड्रेस के अनुसार वेबसाइट ढूंढने में मदद करते हैं, इनको डीएनएस सर्वर कहा जाता है।
जब भी कोई यूजर वेब ब्राउज़र में डोमेन नेम टाइप करता है, तो यह रिक्वेस्ट डोमेन नेम सर्वर के पास जाता है।
जो लुकअप टेबल DNS सरवर के पास होता है, उसको देख कर डोमेन नेम सर्वर आईपी एड्रेस डिटरमाइंड करता है।
और वेब ब्राउजर उस आईपी ऐड्रेस से यूजर की मनचाही इंफॉर्मेशन लेकर आता है।
कोई यूजर जब कोई डोमेन सर्च करता है, तो वह डोमेन चाहे दुनिया के किसी भी सर्वर पर स्टोर हो, डोमेन नेम सिस्टम उसे DNS सर्वर की मदद से ढूंढ कर लाता है।

4 प्रकार के DNS सर्वर हैं-
- DNS रिज़ॉल्वर
- रूट नेम सर्वर
- टॉप लेवल डोमेन (TLD)
- अथॉरिटेटिव नेम सर्वर
क्या डीएनएस जरूरी है?
अगर हम किसी वेबसाइट का आईपी ऐड्रेस जानते हैं, तो हम उसे डायरेक्टली वेब ब्राउज़र में दर्ज कर एक्सेस कर सकते है।
इस सिचुएशन में DNS का कोई रोल नहीं रहा जाता है, क्योंकि हमें पहले से ही उस वेबसाइट का आईपी एड्रेस पता होता है।
किसी एक वेबसाइट का आईपी एड्रेस याद रखना आसान है, लेकिन बहुत सारी वेबसाइट का आईपी एड्रेस याद रखना बहुत ही मुश्किल काम है।
वही बहुत सारे वेबसाइट का डोमेन नेम आसानी से याद किया जा सकता है, तो इसलिए डोमेन नेम सिस्टम नेट सर्फिंग के लिए बहुत जरूरी है।
उदाहरण के लिए, आप ब्राउज़र में google.com टाइप करते हैं, उसकी जगह आपको 64.233.191.255 टाइप करना पड़ता।
Advantages-
- DNS दुनिया की एकमात्र प्रणाली है जो हमें इंटरनेट सर्फ करने में मदद करती है।
- डोमेन नाम प्रणाली के कारण, हमें अब हर वेबसाइट का आईपी पता याद रखने की आवश्यकता नहीं है, हम किसी भी वेबसाइट को केवल डोमेन नाम से खोज सकते हैं।
- शून्य डाउनटाइम के साथ उपयोगकर्ता द्वारा मिली जानकारी जल्दी से उपयोगकर्ता तक पहुंच जाती है।
- डोमेन नाम प्रणाली उन्नत स्तर पर सुरक्षा प्रदान करने में मदद करती है।
- DNS स्वचालित रूप से टाइपिंग के दौरान की गई गलतियों को सुधारता है।
डीएनएस का आविष्कार किसने किया?
DNS- डोमेन नाम प्रणाली का आविष्कार 1983 में जॉन पोस्टेल के साथ अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक और इंटरनेट अग्रणी पॉल वी मॉकपेट्रीस ने किया था।
इस अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक के आविष्कार के कारण, आज हम हजारों वेबसाइटों को इतनी आसानी से याद और सर्फ कर पा रहे हैं।
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